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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन
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श्लोक 30
श्लोक
3.71.30
विज्ञानं हि महद् भ्रष्टं शापदोषेण राघव।
स्वकृतेन मया प्राप्तं रूपं लोकविगर्हितम्॥ ३०॥
अनुवाद
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रघुनन्दन! शाप के दोष के कारण मेरा महान विज्ञान नष्ट हो गया है। अपनी ही करनी से मुझे यह लोक में निंदित रूप मिला है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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