श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 3-4
 
 
श्लोक  3.71.3-4 
 
 
तत: स्थूलशिरा नाम महर्षि: कोपितो मया॥ ३॥
स चिन्वन् विविधं वन्यं रूपेणानेन धर्षित:।
तेनाहमुक्त: प्रेक्ष्यैवं घोरशापाभिधायिना॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  अपने इस व्यवहार से एक दिन मैंने स्थूलशिरा नामक महर्षि को क्रोधित कर दिया। वे नाना प्रकार के जंगली फल-मूल आदि एकत्र कर रहे थे, उसी समय मैंने उन्हें इस राक्षसी रूप से डरा दिया। मुझे ऐसे भयावह रूप में देखकर उन्होंने बड़े ही क्रोध में आकर मुझे भयंकर शाप देते हुए कहा—।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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