श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  3.71.29 
 
 
अदग्धस्य हि विज्ञातुं शक्तिरस्ति न मे प्रभो।
राक्षसं तु महावीर्यं सीता येन हृता तव॥ २९॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रभो! इस शरीर का दाह संस्कार होने तक मुझमें यह जानने की क्षमता नहीं आ सकती कि आपकी सीता का अपहरण किस राक्षस ने किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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