श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 26-27h
 
 
श्लोक  3.71.26-27h 
 
 
एवमुक्तस्तु रामेण वाक्यं दनुरनुत्तमम्॥ २६॥
प्रोवाच कुशलो वक्ता वक्तारमपि राघवम्।
 
 
अनुवाद
 
  श्री रामचंद्र जी के ऐसा कहने पर कुशल वक्ता उस दानव ने प्रवचन में निपुण श्री रामजी से बड़ी ही उत्तम बात कही।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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