श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 24-25h
 
 
श्लोक  3.71.24-25h 
 
 
काष्ठान्यानीय भग्नानि काले शुष्काणि कुञ्जरै:॥ २४॥
धक्ष्यामस्त्वां वयं वीर श्वभ्रे महति कल्पिते।
 
 
अनुवाद
 
  ‘वीर! फिर हमलोग हाथियोंद्वारा तोड़े गये सूखे काठ लाकर स्वयं खोदे हुए एक बहुत बड़े गड्ढेमें तुम्हारे शरीरको रखकर जला देंगे॥ २४ १/२॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.