श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 23-24h
 
 
श्लोक  3.71.23-24h 
 
 
निवासं वा प्रभावं वा वयं तस्य न विद्महे।
शोकार्तानामनाथानामेवं विपरिधावताम्॥ २३॥
कारुण्यं सदृशं कर्तुमुपकारेण वर्तताम्।
 
 
अनुवाद
 
  हम उसका निवास स्थान या उसका प्रभाव जानते ही नहीं हैं। सीता के विलाप से हम व्यथित हैं और असहाय रूप से इधर-उधर भाग रहे हैं। ऐसे में आप हमारे लिए उचित दया दिखाएँ और हमारा कुछ उपकार करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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