श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 21-22
 
 
श्लोक  3.71.21-22 
 
 
रावणेन हृता भार्या सीता मम यशस्विनी॥ २१॥
निष्क्रान्तस्य जनस्थानात् सह भ्रात्रा यथासुखम्।
नाममात्रं तु जानामि न रूपं तस्य रक्षस:॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  कबंध! रावण ने मेरी यशस्वी पत्नी सीता का अपहरण कर लिया है। उस समय मैं सुख-पूर्वक अपन भाई लक्ष्मण के साथ जनस्थान के बाहर चला गया था। मैं उस राक्षस का नाम तो जानता हूँ, पर उसे पहचानता नहीं हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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