श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 18-19h
 
 
श्लोक  3.71.18-19h 
 
 
स त्वं रामोऽसि भद्रं ते नाहमन्येन राघव॥ १८॥
शक्यो हन्तुं यथा तत्त्वमेवमुक्तं महर्षिणा।
 
 
अनुवाद
 
  रघुनंदन! तुम अवश्य ही श्रीराम हो, तुम्हारा कल्याण हो। मैं तुम्हारे सिवा किसी और से नहीं मारा जा सकता था। महर्षि ने यह बात ठीक ही कही थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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