श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 17-18h
 
 
श्लोक  3.71.17-18h 
 
 
अवश्यं ग्रहणं रामो मन्येऽहं समुपैष्यति॥ १७॥
इमां बुद्धिं पुरस्कृत्य देहन्यासकृतश्रम:।
 
 
अनुवाद
 
  इंद्र और ऋषियों की बातों के अनुसार मुझे विश्वास था कि एक दिन श्रीराम निश्चित रूप से मेरे हाथ लगेंगे। इसी विचार को ध्यान में रखकर मैं अपने शरीर को त्यागने का प्रयास कर रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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