श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 16-17h
 
 
श्लोक  3.71.16-17h 
 
 
अनेन वपुषा तात वनेऽस्मिन् राजसत्तम॥ १६॥
यद् यत् पश्यामि सर्वस्य ग्रहणं साधु रोचये।
 
 
अनुवाद
 
  पिताजी! राजश्रेष्ठ! मैं इस वन में अपने शरीर के साथ जो कुछ भी देखता हूँ, वह सब ग्रहण कर लेना उचित समझता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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