श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 14-15h
 
 
श्लोक  3.71.14-15h 
 
 
सोऽहं भुजाभ्यां दीर्घाभ्यां संक्षिप्यास्मिन् वनेचरान्॥ १४॥
सिंहद्वीपिमृगव्याघ्रान् भक्षयामि समन्तत:।
 
 
अनुवाद
 
  मैं अपनी लंबी भुजाओं से जंगल में रहने वाले सिंह, चीते, हरिन और बाघ जैसे शक्तिशाली जानवरों को पकड़कर चारों ओर से खा जाता था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.