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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन
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श्लोक 13-14h
श्लोक
3.71.13-14h
स एवमुक्त: शक्रो मे बाहू योजनमायतौ॥ १३॥
तदा चास्यं च मे कुक्षौ तीक्ष्णदंष्ट्रमकल्पयत् ।
अनुवाद
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इन्द्र ने मेरे ऐसा कहने पर मेरी भुजाओं को एक-एक योजन तक लंबा कर दिया और तुरंत मेरे पेट में तीखे दाढ़ों वाला मुख पैदा कर दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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