श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 12-13h
 
 
श्लोक  3.71.12-13h 
 
 
अनाहार: कथं शक्तो भग्नसक्थिशिरोमुख:॥ १२॥
वज्रेणाभिहत: कालं सुदीर्घमपि जीवितुम्।
 
 
अनुवाद
 
  अब मैं आहार कैसे कर पाऊँगा, और बिना आहार के में इतने लंबे समय तक कैसे जीवित रह सकूँगा? मेरी जाँघें, सिर और मुँह सभी आपके वज्र के प्रहार से टूट गए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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