श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 70: श्रीराम और लक्ष्मण का परस्पर विचार करके कबन्ध की दोनों भुजाओं को काट डालना तथा कबन्ध के द्वारा उनका स्वागत  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.70.5 
 
 
भीषणोऽयं महाकायो राक्षसा भुजविक्रम:।
लोकं ह्यतिजितं कृत्वा ह्यावां हन्तुमिहेच्छति॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  यह विशाल राक्षस बेहद भयानक है। उसकी बाहों में ही उसकी ताकत और दमखम है। उसने पूरी दुनिया को हरा दिया है और अब हमें भी यहाँ मारना चाहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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