श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 70: श्रीराम और लक्ष्मण का परस्पर विचार करके कबन्ध की दोनों भुजाओं को काट डालना तथा कबन्ध के द्वारा उनका स्वागत  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.70.2 
 
 
तिष्ठत: किं नु मां दृष्ट्वा क्षुधार्तं क्षत्रियर्षभौ।
आहारार्थं तु संदिष्टौ दैवेन हतचेतनौ॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  क्षत्रिय वीरों! मुझे भूख से तड़पते देखकर भी खड़े क्यों हो? दैव ने तुम्हें मेरे भोजन के लिए ही यहाँ भेजा है! इसीलिए तुम दोनों की बुद्धि मारी गई है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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