"श्रीरामजी! जो यह कुरूप रूप मुझे मिला है, यह मेरी ही दुष्टता का नतीजा है। यह सब कैसे हुआ, वह प्रसंग मैं आपको ठीक से बताता हूँ। आप मेरी बात सुनें।"
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे सप्ततितम: सर्ग: ॥ ७ ०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें सत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ७ ०॥