श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 70: श्रीराम और लक्ष्मण का परस्पर विचार करके कबन्ध की दोनों भुजाओं को काट डालना तथा कबन्ध के द्वारा उनका स्वागत  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.70.18 
 
 
स्वागतं वां नरव्याघ्रौ दिष्टॺा पश्यामि वामहम्।
दिष्टॺा चेमौ निकृत्तौ मे युवाभ्यां बाहुबन्धनौ॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  स्वागत है नरश्रेष्ठ वीरो! सौभाग्य से मैंने आप दोनों का दर्शन किया। ये मेरी दोनों भुजाएँ मेरे लिए एक बड़ा बंधन थीं। अच्छी बात हुई कि आप दोनों ने इन्हें काट दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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