श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 70: श्रीराम और लक्ष्मण का परस्पर विचार करके कबन्ध की दोनों भुजाओं को काट डालना तथा कबन्ध के द्वारा उनका स्वागत  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.70.16 
 
 
त्वं तु को वा किमर्थं वा कबन्धसदृशो वने।
आस्येनोरसि दीप्तेन भग्नजङ्घो विचेष्टसे॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम कौन हो? और कबन्ध जैसा रूप धारण करके इस वन में क्यों पड़े हो? तुम्हारा मुंह छाती के नीचे चमक रहा है और तुम्हारी जंघा टूटी हुई है, तो तुम इधर-उधर क्यों लुढ़कते फिरते हो?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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