त्वं तु को वा किमर्थं वा कबन्धसदृशो वने।
आस्येनोरसि दीप्तेन भग्नजङ्घो विचेष्टसे॥ १६॥
अनुवाद
तुम कौन हो? और कबन्ध जैसा रूप धारण करके इस वन में क्यों पड़े हो? तुम्हारा मुंह छाती के नीचे चमक रहा है और तुम्हारी जंघा टूटी हुई है, तो तुम इधर-उधर क्यों लुढ़कते फिरते हो?