मात्रा प्रतिहते राज्ये राम: प्रव्राजितो वनम्।
मया सह चरत्येष भार्यया च महद् वनम्॥ १४॥
अस्य देवप्रभावस्य वसतो विजने वने।
रक्षसापहृता भार्या यामिच्छन्ताविहागतौ॥ १५॥
अनुवाद
रामचंद्रजी कहते हैं कि जब कैकेयी ने उनके राज्याभिषेक पर रोक लगा दी, तो पिता की आज्ञा से वे वन चले आए और मेरे और अपनी पत्नी के साथ इस विशाल वन में विचरण करने लगे। इस सुनसान वन में रहते हुए देवतुल्य प्रभावशाली श्री रामचंद्रजी की पत्नी सीता को एक राक्षस ने हर लिया है। उन्हीं का पता लगाने की इच्छा से हम दोनों यहाँ आए हैं।