श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 70: श्रीराम और लक्ष्मण का परस्पर विचार करके कबन्ध की दोनों भुजाओं को काट डालना तथा कबन्ध के द्वारा उनका स्वागत  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  3.70.14-15 
 
 
मात्रा प्रतिहते राज्ये राम: प्रव्राजितो वनम्।
मया सह चरत्येष भार्यया च महद् वनम्॥ १४॥
अस्य देवप्रभावस्य वसतो विजने वने।
रक्षसापहृता भार्या यामिच्छन्ताविहागतौ॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  रामचंद्रजी कहते हैं कि जब कैकेयी ने उनके राज्याभिषेक पर रोक लगा दी, तो पिता की आज्ञा से वे वन चले आए और मेरे और अपनी पत्नी के साथ इस विशाल वन में विचरण करने लगे। इस सुनसान वन में रहते हुए देवतुल्य प्रभावशाली श्री रामचंद्रजी की पत्नी सीता को एक राक्षस ने हर लिया है। उन्हीं का पता लगाने की इच्छा से हम दोनों यहाँ आए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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