श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 7: सीता और भ्राता सहित श्रीराम का सुतीक्ष्ण के आश्रम पर जाकर उनसे बातचीत करना तथा उनसे सत्कृत हो रात में वहीं ठहरना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.7.10 
 
 
चित्रकूटमुपादाय राज्यभ्रष्टोऽसि मे श्रुत:।
इहोपयात: काकुत्स्थ देवराज: शतक्रतु:॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  चित्रकूट में रह रहे हो, यह मैंने सुना है। काकुत्स्थ! यहाँ सौ यज्ञों का आयोजन करने वाले देवराज इन्द्र ने भी प्रवास किया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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