श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.69.7 
 
 
दिदृक्षमाणौ वैदेहीं तद् वनं तौ विचिक्यतु:।
तत्र तत्रावतिष्ठन्तौ सीताहरणदु:खितौ॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  सीता का पता लगाने की तीव्र इच्छा से दोनों भाई उस वन में जगह-जगह खोजते हुए भटकते रहे। कभी थक जाने पर विश्राम के लिए रुक जाते, परंतु सीता का अपहरण हो जाने के कारण उन्हें बड़ा दुःख हो रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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