श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना  »  श्लोक 51
 
 
श्लोक  3.69.51 
 
 
इति ब्रुवाणो दृढसत्यविक्रमो
महायशा दाशरथि: प्रतापवान्।
अवेक्ष्य सौमित्रिमुदग्रविक्रम:
स्थिरां तदा स्वां मतिमात्मनाकरोत्॥ ५१॥
 
 
अनुवाद
 
  दृढ़सत्यविक्रम महायशा दाशरथि प्रतापवान श्रीराम ने यह कहते हुए सौमित्रि की ओर देखा और अपनी बुद्धि को स्थिर किया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे एकोनसप्ततितम: सर्ग: ॥ ६ ९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें उनहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ६ ९॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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