श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना  »  श्लोक 46-48h
 
 
श्लोक  3.69.46-48h 
 
 
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा कबन्धस्य दुरात्मन:॥ ४६॥
उवाच लक्ष्मणं रामो मुखेन परिशुष्यता।
कृच्छ्रात् कृच्छ्रतरं प्राप्य दारुणं सत्यविक्रम॥ ४७॥
व्यसनं जीवितान्ताय प्राप्तमप्राप्य तां प्रियाम्।
 
 
अनुवाद
 
  कबन्ध की इन दुष्टतापूर्ण बातों को सुनकर श्री राम ने सूखे हुए मुँह वाले लक्ष्मण से कहा - "सत्यपराक्रमी वीर! कठिनाइयों से कठिन दुःख सहने के बाद भी हम दुखी थे, लेकिन प्रियतमा सीता को पाने से पहले ही यह महान संकट आ गया है, जो जीवन का अंत कर देने वाला है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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