श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना  »  श्लोक 45-46h
 
 
श्लोक  3.69.45-46h 
 
 
इमं देशमनुप्राप्तौ क्षुधार्तस्येह तिष्ठत:।
सबाणचापखड्गौ च तीक्ष्णशृङ्गाविवर्षभौ॥ ४५॥
मां तूर्णमनुसम्प्राप्तौ दुर्लभं जीवितं हि वाम्।
 
 
अनुवाद
 
  "मैं यहाँ भूख से पीड़ित होकर खड़ा था और तुम दोनों स्वयं ही धनुष-बाण और तलवार लेकर, तीखे सींगों वाले दो बैलों के समान, तुरंत ही मेरे निकट आ पहुँचे। इसलिए अब तुम्हारा जीवित रहना कठिन है"।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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