श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना  »  श्लोक 43-44
 
 
श्लोक  3.69.43-44 
 
 
कौ युवां वृषभस्कन्धौ महाखड्गधनुर्धरौ॥ ४३॥
घोरं देशमिमं प्राप्तौ दैवेन मम चाक्षुषौ।
वदतं कार्यमिह वां किमर्थं चागतौ युवाम्॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम दोनों युवानों के कंधे बैल के समान ऊँचे हैं और तुमने बड़ी-बड़ी तलवारें तथा धनुष धारण कर रखा है। इस भयंकर देश में तुम कैसे पहुँच गये? तुम यहाँ क्या कार्य करना चाहते हो? बताओ भाग्य से ही तुम दोनों मेरी नजरों के सामने आ गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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