श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना  »  श्लोक 41-42h
 
 
श्लोक  3.69.41-42h 
 
 
लक्ष्मणेनैवमुक्तस्तु राम: सौमित्रिमब्रवीत्॥ ४१॥
मा स्म त्रासं वृथा वीर नहि त्वादृग् विषीदति।
 
 
अनुवाद
 
  श्री राम लक्ष्मण की बात सुनकर सौमित्र को कहने लगे - "वीर! तुम व्यर्थ ही डरो मत, तुम्हारे जैसे वीर पुरुष इस प्रकार विषाद नहीं करते हैं।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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