श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  3.69.37 
 
 
तत्र धैर्याच्च शूरस्तु राघवो नैव विव्यथे।
बाल्यादनाश्रयाच्चैव लक्ष्मणस्त्वभिविव्यथे॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय वीरवर रघुநन्दन श्रीराम तो धैर्यवान होने के कारण व्यथित न हुए, किंतु बाल बुद्धि होने और धैर्य का आश्रय न लेने के कारण लक्ष्मण के मन में अत्यधिक पीड़ा हुई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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