श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना  »  श्लोक 31-32
 
 
श्लोक  3.69.31-32 
 
 
भक्षयन्तं महाघोरानृक्षसिंहमृगद्विजान्।
घोरौ भुजौ विकुर्वाणमुभौ योजनमायतौ॥ ३१॥
कराभ्यां विविधान् गृह्य ऋक्षान् पक्षिगणान् मृगान्।
आकर्षन्तं विकर्षन्तमनेकान् मृगयूथपान्॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
 
  सुरसिंधु सेवक सुभटों के डरावने लक्षणों का वर्णन इस प्रकार किया गया है- बहुत ज़्यादा ख़तरनाक रीछ, शेर, हिंसक जानवर और पक्षी- बस यही उसके खाने-पीने का सामान थे। उसके पास एक-एक योजन लंबी दो ज़्यादा ही डरावनी भुजाएँ थीं। वह अपनी दोनों भुजाओं को दूर-दूर तक फैला देता था और उन दोनों हाथों से अनेक प्रकार के ढेरों भालू, पक्षी, जानवर और हिरणों के झुंड के सरदारों को पकड़कर खींच लेता था। उनमें से जो उसे खाने के लिए अभीष्ट नहीं होते हैं, उन जानवरों को वह उन्हीं हाथों से पीछे धकेल देता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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