श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना  »  श्लोक 29-30
 
 
श्लोक  3.69.29-30 
 
 
अग्निज्वालानिकाशेन ललाटस्थेन दीप्यता।
महापक्षेण पिङ्गेन विपुलेनायतेन च॥ २९॥
एकेनोरसि घोरेण नयनेन सुदर्शिना।
महादंष्ट्रोपपन्नं तं लेलिहानं महामुखम्॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  ललाट उसके सीने के बीच में था और ललाट में एक बड़ी चौड़ी और आग की लपटों की तरह चमकती हुई डरावनी आँख थी, जो बहुत अच्छी तरह देख सकती थी। उसकी पलकें बहुत बड़ी थीं और आँख भूरे रंग की थी। उस राक्षस की दाढ़ें बहुत बड़ी थीं और वह बार-बार अपनी लपलपाती हुई जीभ से अपने विशाल मुंह को चाट रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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