श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.69.14 
 
 
सा समासाद्य तौ वीरौ व्रजन्तं भ्रातुरग्रत:।
एहि रंस्यावहेत्युक्त्वा समालम्भत लक्ष्मणम्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षसी दोनों वीरों के पास पहुँची और अपने भाई रावण के आगे-आगे चलते हुए लक्ष्मण की ओर देखकर बोली - 'आओ हम दोनों आनंद लें।' ऐसा कहकर उसने लक्ष्मण का हाथ पकड़ लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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