श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.68.7 
 
 
कथंवीर्य: कथंरूप: किंकर्मा स च राक्षस:।
क्व चास्य भवनं तात ब्रूहि मे परिपृच्छत:॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  तात! उस राक्षस का बल, पराक्रम और रूप कैसा है? वह क्या काम करता है? और उसका घर कहाँ है? मैं जो कुछ पूछ रहा हूँ, वह सब बताइये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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