श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  3.68.37 
 
 
स गृध्रराज: कृतवान् यशस्करं
सुदुष्करं कर्म रणे निपातित:।
महर्षिकल्पेन च संस्कृतस्तदा
जगाम पुण्यां गतिमात्मन: शुभाम्॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  गृध्रराज जटायु ने रणभूमि में अत्यंत दुष्कर और यशस्वी पराक्रम दिखाया था। परंतु अंत में रावण ने उसे मार गिराया। महर्षि तुल्य श्रीराम ने उनका दाह संस्कार किया, जिससे उन्हें आत्मा का कल्याण करने वाली परम पवित्र गति प्राप्त हुई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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