श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार  »  श्लोक 32-33
 
 
श्लोक  3.68.32-33 
 
 
रामोऽथ सहसौमित्रिर्वनं गत्वा स वीर्यवान्।
स्थूलान् हत्वा महारोहीननुतस्तार तं द्विजम्॥ ३२॥
रोहिमांसानि चोद‍्धृत्य पेशीकृत्वा महायशा:।
शकुनाय ददौ रामो रम्ये हरितशाद्वले॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् बलशाली श्रीराम लक्ष्मण के साथ वन में जाकर मोटे-मोटे महारोही (एक प्रकार का कंदमूल) काटकर ले आये और जटायु को अर्पित करने के उद्देश्य से उन्होंने जमीन पर कुश बिछाये। बहुत यशस्वी श्रीराम ने उन रोही के गूदे निकालकर उनका पिंड बनाया और उन सुंदर हरी-भरी कुशाओं पर जटायु को पिंडदान किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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