श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  3.68.31 
 
 
एवमुक्त्वा चितां दीप्तामारोप्य पतगेश्वरम्।
ददाह रामो धर्मात्मा स्वबन्धुमिव दु:खित:॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  धर्मात्मा श्रीरामचन्द्रजी ने दुःख के साथ पक्षियों के राजा के शरीर को चिता की ज्वालाओं में समर्पित किया, मानो वह उनका अपना बन्धु हो। उन्होंने शोक-विह्वल हृदय से अपने प्रिय मित्र को विदा दी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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