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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार
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श्लोक 27
श्लोक
3.68.27
सौमित्रे हर काष्ठानि निर्मथिष्यामि पावकम्।
गृध्रराजं दिधक्ष्यामि मत्कृते निधनं गतम्॥ २७॥
अनुवाद
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सुमित्रानन्दन! तुम सूखी लकड़ियाँ ले आओ, मैं मथकर आग निकालूँगा और मेरे कारण मृत्यु प्राप्त हुए इन गृध्रराज का दाह-संस्कार करूँगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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