वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार
»
श्लोक 20
श्लोक
3.68.20
बहूनि रक्षसां वासे वर्षाणि वसता सुखम्।
अनेन दण्डकारण्ये विशीर्णमिह पक्षिणा॥ २०॥
अनुवाद
play_arrowpause
लक्ष्मण! राक्षसों के निवास स्थान इस दण्डकारण्य में अनेकों वर्षों तक सुखपूर्वक रहकर इन पक्षिराज ने यहीं अपने शरीर का परित्याग किया है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.