श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.68.18 
 
 
स निक्षिप्य शिरो भूमौ प्रसार्य चरणौ तथा।
विक्षिप्य च शरीरं स्वं पपात धरणीतले॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  उन्होंने अपना सिर जमीन पर रख दिया, अपने दोनों पैर फैलाए और अपना शरीर भी धरती पर ही रखते हुए वे धराशायी हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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