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सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार
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श्लोक 17
श्लोक
3.68.17
ब्रूहि ब्रूहीति रामस्य ब्रुवाणस्य कृताञ्जले:।
त्यक्त्वा शरीरं गृध्रस्य प्राणा जग्मुर्विहायसम्॥ १७॥
अनुवाद
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श्रीरामचन्द्रजी ने हाथ जोड़कर कहा, "बोलो, बोलो, कुछ और बोलो!" परन्तु उसी समय गृध्रराज के प्राण उनके शरीर को त्यागकर आकाश में चले गए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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