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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार
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श्लोक 15
श्लोक
3.68.15
असम्मूढस्य गृध्रस्य रामं प्रत्यनुभाषत:।
आस्यात् सुस्राव रुधिरं म्रियमाणस्य सामिषम्॥ १५॥
अनुवाद
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गृध्रराज जटायु भले ही मृत्यु के कगार पर थे, लेकिन उनका मन स्थिर और स्पष्ट था। वे श्रीरामचन्द्रजी को उत्तर दे ही रहे थे कि उनके मुंह से खून निकलने लगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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