वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार
»
श्लोक 14
श्लोक
3.68.14
न च त्वया व्यथा कार्या जनकस्य सुतां प्रति।
वैदेह्या रंस्यसे क्षिप्रं हत्वा तं रणमूर्धनि॥ १४॥
अनुवाद
play_arrowpause
‘अत: अब तुम जनकनन्दिनीके लिये अपने मनमें खेद न करो। संग्रामके मुहानेपर उस निशाचरका वध करके तुम शीघ्र ही पुन: विदेहराजकुमारीके साथ विहार करोगे’॥ १४॥
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.