येन याति मुहूर्तेन सीतामादाय रावण:।
विप्रणष्टं धनं क्षिप्रं तत्स्वामी प्रतिपद्यते॥ १२॥
विन्दो नाम मुहूर्तोऽसौ न च काकुत्स्थ सोऽबुधत् ।
त्वत्प्रियां जानकीं हृत्वा रावणो राक्षसेश्वर:।
झषवद् बडिशं गृह्य क्षिप्रमेव विनश्यति॥ १३॥
अनुवाद
‘रावण सीताको जिस मुहूर्तमें ले गया है, उसमें खोया हुआ धन शीघ्र ही उसके स्वामीको मिल जाता है। काकुत्स्थ! वह ‘विन्द’ नामक मुहूर्त था, किंतु उस राक्षसको इसका पता नहीं था। जैसे मछली मौतके लिये ही बंसी पकड़ लेती है, उसी प्रकार वह भी सीताको ले जाकर शीघ्र ही नष्ट हो जायगा॥ १२-१३॥