श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  3.68.11 
 
 
उपरुध्यन्ति मे प्राणा दृष्टिर्भ्रमति राघव।
पश्यामि वृक्षान् सौवर्णानुशीरकृतमूर्धजान्॥ ११॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! अब मेरी प्राणशक्ति क्षीण हो रही है, दृष्टि धुँधला रही है और सारे वृक्ष मुझे सुनहरे रंग के दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि उन वृक्षों पर खस के फूलों की पंखुड़ियाँ जमी हुई हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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