श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.68.10 
 
 
परिक्लान्तस्य मे तात पक्षौ छित्त्वा निशाचर:।
सीतामादाय वैदेहीं प्रयातो दक्षिणामुख:॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  पिताजी! जब मैं रावण से लड़ते-लड़ते थक गया और वो मुझे परास्त करने में सफल हो गया तब उसने मेरे दोनों पंख काट डाले। इसके बाद वो निशाचर (रावण) सीता को अपने साथ ले जाकर दक्षिण दिशा की ओर चला गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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