श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 66: लक्ष्मण का श्रीराम को समझाना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  3.66.6 
 
 
आश्वसिहि नरश्रेष्ठ प्राणिन: कस्य नापद:।
संस्पृशन्त्यग्निवद् राजन् क्षणेन व्यपयान्ति च॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  नरश्रेष्ठ! आप धैर्य रखिए। संसार में ऐसा कौन सा प्राणी है जिस पर कभी कोई विपत्ति नहीं आई हो? राजन! विपत्तियाँ आग की तरह होती हैं, जो एक पल में स्पर्श करती हैं और दूसरे ही पल दूर हो जाती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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