श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 66: लक्ष्मण का श्रीराम को समझाना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.66.18 
 
 
मामेवं हि पुरा वीर त्वमेव बहुशोक्तवान्।
अनुशिष्याद्धि को नु त्वामपि साक्षाद् बृहस्पति:॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  वीर! पहले भी आपने अनेक बार इस तरह की बातें कहकर मुझे समझाया है, कोई आपको सिखा भी नहीं सकता। स्वयं बृहस्पति भी आपको उपदेश नहीं दे सकते।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.