वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 66: लक्ष्मण का श्रीराम को समझाना
»
श्लोक 18
श्लोक
3.66.18
मामेवं हि पुरा वीर त्वमेव बहुशोक्तवान्।
अनुशिष्याद्धि को नु त्वामपि साक्षाद् बृहस्पति:॥ १८॥
अनुवाद
play_arrowpause
वीर! पहले भी आपने अनेक बार इस तरह की बातें कहकर मुझे समझाया है, कोई आपको सिखा भी नहीं सकता। स्वयं बृहस्पति भी आपको उपदेश नहीं दे सकते।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.