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श्लोक 14
श्लोक
3.66.14
मृतायामपि वैदेह्यां नष्टायामपि राघव।
शोचितुं नार्हसे वीर यथान्य: प्राकृतस्तथा॥ १४॥
अनुवाद
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वीर रघुनन्दन! विदेहराज कुमारी सीता यदि मर भी जाएँ या नष्ट भी हो जाएँ तो भी तुम्हें अन्य साधारण मनुष्यों की तरह शोक-चिंता नहीं करनी चाहिए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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