सुमहान्त्यपि भूतानि देवाश्च पुरुषर्षभ।
न दैवस्य प्रमुञ्चन्ति सर्वभूतानि देहिन:॥ १२॥
अनुवाद
पुरुष श्रेष्ठ ! बड़े-बड़े भूत (प्राकृतिक तत्व) और देवता भी दैव (भाग्य या प्रारब्ध-कर्म) की अधीनता से मुक्त नहीं हो पाते हैं। तो फिर संपूर्ण देहधारी जीवों के लिए तो कहना ही क्या।