श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 65: लक्ष्मण का श्रीराम को समझा-बुझाकर शान्त करना  »  श्लोक 7-9
 
 
श्लोक  3.65.7-9 
 
 
केन वा कस्य वा हेतो: सयुग: सपरिच्छद:।
खुरनेमिक्षतश्चायं सिक्तो रुधिरबिन्दुभि:॥ ७॥
देशो निर्वृत्तसंग्राम: सुघोर: पार्थिवात्मज।
एकस्य तु विमर्दोऽयं न द्वयोर्वदतां वर॥ ८॥
नहि वृत्तं हि पश्यामि बलस्य महत: पदम्।
नैकस्य तु कृते लोकान् विनाशयितुमर्हसि॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘अथवा किसने और किस कारण से यहाँ पर जुए और अन्य उपकरणों से सहित इस रथ को नष्ट कर दिया है, इसका पता भी लगाना है। राजकुमार! यह स्थान घोड़ों के खुरों और पहियों के निशान से खुदा हुआ प्रतीत हो रहा है और साथ ही खून की बूंदों से सना हुआ भी है। इससे सिद्ध होता है कि यहाँ पर कोई भीषण संग्राम हुआ था, परंतु यह संग्राम चिह्न किसी एक ही रथ वाले के हैं, दो के नहीं। वक्ताओं में श्रेष्ठ श्रीराम, मैं यहाँ किसी विशाल सेना के पदचिह्नों को नहीं देख पा रहा हूँ; इसलिए किसी एक के अपराध के कारण आपको संपूर्ण लोकों का विनाश नहीं करना चाहिए।’
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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