वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 65: लक्ष्मण का श्रीराम को समझा-बुझाकर शान्त करना
»
श्लोक 5
श्लोक
3.65.5
चन्द्रे लक्ष्मी: प्रभा सूर्ये गतिर्वायौ भुवि क्षमा।
एतच्च नियतं नित्यं त्वयि चानुत्तमं यश:॥ ५॥
अनुवाद
play_arrowpause
जैसे चंद्रमा में शोभा, सूर्य में चमक, वायु में गति और पृथ्वी में क्षमा निरंतर विद्यमान रहती है, वैसे ही आप में भी सर्वश्रेष्ठ यश हमेशा प्रकाशित रहता है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.