पुरा भूत्वा मृदुर्दान्त: सर्वभूतहिते रत:।
न क्रोधवशमापन्न: प्रकृतिं हातुमर्हसि॥ ४॥
अनुवाद
आर्य! आप पूर्व में मृदु स्वभाव वाले, अपनी इंद्रियों को वश में रखने वालेऔर सभी प्राणियों के कल्याण हेतु तत्पर रहते थे।अब क्रोध के वशीभूत होकर अपने स्वभाव का त्याग नहीं करें।